रिपोर्ट : मिथुन शर्मा पत्रकार
*महामस्तकाभिषेक के पश्चात जैन समाज ने कराया नगर भोज*
आरोन। अरनाथ प्रभु के जन्मोत्सव के अवसर पर शनिवार को जैन समाज द्वारा विभिन्न धार्मिक एवं सामाजिक कार्यक्रमों का आयोजन नगर में किया गया सुनील झंडा ने बताया कि आचार्य बड़ा जैन मंदिर में प्रात: 7 बजे से चैतन्य चमत्कारी श्री अरनाथ प्रभु का महामस्तकाभिषेक किया प्रचार मंत्री सुनील झंडा ने बताया कि विगत वर्षों की भांति इस बर्ष भी श्री अरनाथ जयंती पर जैन समाज द्वारा नगर के समस्त नगर बासियों के लिए नगर भोज के माध्यम से भोजन प्रसादी करायी गयी। कुछ बर्ष पूर्व इस नगर भोज की शुरुआत जैन समाज के युवाओं द्वारा की गयी थी जिसने अब एक बड़े आयोजन का रूप ले लिया है।
इस बार भी नगर भोज का यह आयोजन स्थानीय वर्धमान कॉम्प्लेक्स परिसर में हुआ।
लगभग 15 हजार से अधिक लोगों ने इस नगर भोज में भोजन प्रसादी ग्रहण की। रात्री में सांस्कृतिक कार्यक्रमों के तहत संगीतमय सामूहिक आरती भक्ति का आयोजन किया गया जिसमें श्रृद्धालुओं ने झूम झूम कर अरनाथ भगवान की नृत्य भक्ति की कार्यक्रम स्थल पर एक बड़ी एलईडी स्क्रीन लगाई गई थी जिस पर जैन मुनियों एवं बागेश्वर धाम के पंडित धीरेन्द्र शास्त्री जी के मंगल प्रवचनों से सभी को सात्विक जीवन जीने की सीख देते हुए जागृत करने का प्रयास किया गया।
इस आयोजन में शामिल होने के लिए गुना,अशोकनगर, विदिशा,किशनगढ़ राजस्थान, मंडीदीप से आरोन पहुंचे।
अरनाथ प्रभु का जीवन परिचय
जैन धर्म के अठारहवें तीर्थंकर
- अरनाथ जी जैन धर्म के अठारहवें तीर्थंकर थे। उन्हें चक्रवर्ती भी कहा जाता था। उनके पिता का नाम राजा सुदर्शन और माता का नाम मित्रसेना था।
- जन्म और दीक्षा: उनका जन्म हस्तिनापुर में हुआ था। दीक्षा लेने से पहले वे मंडलेश्वर और चक्रवर्ती भी रहे।
- चिन्ह: उनका चिन्ह मछली है।
- आयु: उनकी आयु 84,000 वर्ष थी।
- देह: उनकी देह स्वर्ण के समान चमकदार थी।
- क्यों हैं वे महत्वपूर्ण?
- ज्ञान और मोक्ष: उन्होंने ज्ञान प्राप्त कर मोक्ष का मार्ग दिखाया।
- अहिंसा का प्रचार: उन्होंने अहिंसा का प्रचार किया।
- जैन धर्म का विकास: उनके उपदेशों ने जैन धर्म के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- अरनाथ जी के जीवन से सीख
- ज्ञान का महत्व: ज्ञान ही मोक्ष का मार्ग है।
- अहिंसा: सभी जीवों के प्रति दया भाव रखना चाहिए।
- कर्मफल: हमारे कर्मों का फल हमें अवश्य मिलता है।
- अन्य रोचक तथ्य
- वे सातवें चक्रवर्ती भी थे।
- उनकी देह का आकार 30 धनुष था।