गुना :हिंदू धर्म में देवउठनी एकादशी तिथि बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाती है. कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष में आने वाली देवउठनी एकादशी तिथि को प्रबोधिनी एकादशी और देवोत्थान एकादशी के नाम से भी जानते हैं. इस दिन भगवान विष्णु चार माह के लंबे समय के बाद योग निद्रा से जागते हैं, उसके साथ ही चातुर्मास का समापन होगा. श्रीहरि विष्णु सृष्टि के संचालन का दायित्व फिर से संभाल लेते हैं. इस दिन से ही विवाह, सगाई, मुंडन, गृह प्रवेश जैसे मांगलिक कार्य भी शुरू हो जाते हैं.
हिंदू पंचांग के अनुसार, कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी को श्रीहरि योग निद्रा से जागते हैं और इस बार देवउठनी एकादशी का व्रत 12 नवंबर यानी आज रखा जा रहा है. दरअसल, भगवान विष्णु आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी को चार महीने के लिए सो जाते हैं और योग निद्रा में चले जाते हैं जिसके कारण मांगलिक कार्य वर्जित हो जाते हैं.
परंतु देव यानी भगवान विष्णु के जागते ही मांगलिक कार्य संपन्न हो जाते हैं. देव जागरण या देव उत्थान होने की वजह से इसको देवोत्थान एकादशी कहते हैं. देवउठनी एकादशी साल की सबसे बड़ी एकादशी में से एक है. इस दिन उपवास रखने का विशेष महत्व है और उपवास रखने से मोक्ष की प्राप्ति भी होती है. इसी के अगले दिन माता तुलसी और शालिग्राम जी का विवाह करवाया जाता है.
देवउठनी एकादशी पूजन विधि और सामग्री(Devuthani Ekadashi Pujan Vidhi)
इस दिन गन्ने का मंडप बनाएं और बीच में चौक बनाएं. चौक के मध्य में चाहें तो भगवान विष्णु का चित्र या मूर्ति रख सकते हैं. चौक के साथ ही भगवान के चरण चिह्न बनाए जाते हैं, जो ढके रहने चाहिए. भगवान को गन्ना, सिंघाडा और फल-मिठाई अर्पित किया जाता है. फिर घी का एक दीपक जलाएं. इसे रात भर जलने दें.
फिर भोर में भगवान के चरणों की विधिवत पूजा करें और चरणों को स्पर्श करके उनको जगाएं. कीर्तन करें. व्रत-उपवास की कथा सुनें. इसके बाद से सारे मंगल कार्य विधिवत शुरु किए जा सकते हैं. कहते हैं कि भगवान के चरणों का स्पर्श करके जो मनोकामना मांगते हैं, वो पूरी हो जाती है.
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